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भटकती आत्मा भाग - 28




भटकती आत्मा भाग –28

रात्रि अपने वयः संधि के प्रथम चरण में थी l चारों तरफ़ मशालों का प्रकाश व्याप्त था l दोनों गांव के सब लोग उस स्थान पर इकट्ठे हुए थे जहां दिन में युद्ध स्थल का समा था l दोनों सरदारों को अफसोस था कि विरासत में
मिले अक्खड़ स्वभाव के कारण कुछ युवकों की जान चली गई थी l यदि उनके बीच यह दुश्मनी नहीं होती तो ऐसा क्यों कर होता l घायल युवकों को जंगली दवा दिया गया था जिसका आश्चर्यजनक प्रभाव था l कुछ मृत युवकों का संस्कार उसी वन में विधि विधान सहित किया गया था l और दोनों गांव के ग्रामीण ने इस दु:ख में करमा पर्व में नाच गाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया था | सामान्य तरीके से कर्म देव की उपासना करने का निर्णय लिया था l  राघोपुर गांव के दो युवक मौत के घाट उतारे जा चुके थे l जमुना बाड़ी में किसी की मृत्यु नहीं हुई थी परन्तु राघोपुर के युवक की मौत से वे भी दु:खी थे | इस दु:ख के मध्य भी दोनों गांव के लोग कर्म के पूजा की तैयारी नगाड़े बजाते हुए कर रहे थे नगाड़े की आवाज शून्य रात्रि में दिन की भ्रांति उत्पन्न कर रही थी l हँड़िया और दारू पानी के समान बह रहा था l कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जो नशे में ना हो l दु:ख हो या सुख नशे का उपयोग इनके लिए एक सामान्य बात थी l जैसे खुशी के अवसर पर यह नशा का सेवन करते हैं, उसी प्रकार दु:ख में भी यह नशा का सेवन करते हैं l और आज तो दु:ख के साथ बहुत बड़ी खुशी का भी अवसर था | दो समुदाय का,दो समाज का,दो गांव का,वर्षों से चलने वाली लगभग खानदानी दुश्मनी समाप्त हो रही थी, तो इस अवसर पर तो उनका झूमना भी बनता था | मृत्यु प्राप्त युवकों के लिए दिल में दु:ख को लिए हुए वह सामान्य तरीके से ही त्योहार मना रहे थे | वास्तव में यह उत्सव त्योहार का नहीं विरासत में चली आ रही दुश्मनी के समापन का था, जो दो युवकों की बलि के बाद संभव हो पाया था |
   दोनों गांव के सरदार तथा कुछ वृद्ध जन एक ऊंची चट्टान पर बैठे थे | मनकू माँझी उन लोगों से बेखबर एक जन शून्य स्थान पर बैठा अतीत की यादों में खोया था l धन्नो उसको खोजती चल रही थी,परन्तु उसका कहीं पता नहीं चल पा रहा था l मनकू की कमी को पूरा करने का प्रयास सरदार का पुत्र कर रहा था l
  राघोपुर के सरदार ने गंभीरता को तोड़ते हुए कहा -  "अब मैं वह कहानी सुनाने जा रहा हूं जो आठ वर्ष पुराना है" -
   फिर कथा के मोती बिखरने लगे | वहां बैठे लोग अपने कर्ण रन्ध्रों में उसको स्थान देते जा रहे थे l
    
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   आठ वर्ष पूर्व ! बैसाख का वार्षिक मेला था, गांव के सभी लोग मेला में जाने के लिए सज सँवर रहे थे। कुछ देर के बाद राघोपुर का सरदार तैयार होकर बाहर निकला। उसके घोड़े की सजावट देखते ही बन रहा था। उसके साथ कुछ नवयुवक भी थे। सभी अपने-अपने घोड़े पर चढ़कर जंगल के रास्ते आगे बढ़ते जा रहे थे | सहसा सरदार को प्यास लगी । उसने एक युवक से पानी लाने को कहा तथा स्वयँ कुछ युवकों के साथ एक छायादार पेड़ के नीचे बैठ गया। घोड़े पास के ही पेड़ों से बांध दिए गए थे। समीप ही एक नदी बह रही थी उसी से पानी लाने के लिए युवक गया था l कुछ देर की प्रतीक्षा के बाद वह युवक दौड़ा हुआ आया । उसके मुख पर घबड़ाहट थी l उसके हाथ से पानी लेकर सरदार ने पूछा - "क्यों क्या हुआ बेटा, चेहरे पर इतनी  घबड़ाहट क्यों है"?
  "सरदार गजब हो गया, नदी के बीच में एक चट्टान से अटका हुआ एक लाश है"|
   "लाश है ! क्या कह रहे हो ! तुम्हें भ्रम तो नहीं हुआ"!
   "नहीं सरदार, मैं भली-भांति देखकर आ रहा हूं"|
  "अरे तो चलो हम लोग भी चल कर देखें,आखिर मामला क्या है" - कहता हुआ सरदार सभी युवकों के साथ नदी किनारे पहुंचा | सबकी आंखें आश्चर्य से फट गईं l वहां तो वास्तव में एक लाश नदी के मध्य एक शैल खंड से अटका हुआ था l चूँकि घनघोर जंगल के मध्य यह नदी बहती थी,इसलिए ऐसे किसी के यहां आने का प्रश्न ही नहीं था l इसलिए सरदार के अनुमान के अनुसार यह कहीं दूर से बहता हुआ यहां आ गया है और बीच में चट्टान पड़ जाने के कारण अटक गया है l सरदार ने तुरंत काहा-
   "अरे बिगल लाश को यहां तो उठा लाओ,देखें कहीं वह लाश नहीं हो,उसमें कुछ जान बाकी हो"।
उनकी आज्ञा पाकर बिगल दौड़ा हुआ गया और कुछ देर के बाद शव सरदार के सम्मुख रख दिया । सरदार ने उसका निरीक्षण किया l बारह-चौदह वर्ष का एक किशोर बालक था वह l बहुत ध्यान पूर्वक देखने पर नाड़ी की क्षीण गति महसूस हुई l सरदारकी आंखें प्रसन्नता से खिल उठीं l  उसने लड़के के बाजू पर सांप का चिन्ह बना हुआ देखा l यह चिन्ह तो जमुना बाड़ी का था l सपेरों के भिन्न-भिन्न बस्तियों के सदस्यों की बांहों पर भिन्न भिन्न प्रकार के सांप के चिन्ह बना दिए जाते थे l उससे उनकी पहचान होती थी।इसी से सरदार इस किशोर बालक को पहचान पाया था l परन्तु जमुना बाड़ी का रहने वाला यह किसका पुत्र था यह समस्या थी l परन्तु अभी सबसे प्रमुख समस्या उसको चंगा करना था l सरदार ने उसके पेट से पानी निकाला फिर उसके मुंह को खोल कर अपने मुंह से सांस देने लगा l कृत्रिम हवा प्रदान करने के बाद उसकी सांस चलने लगी। फिर जंगल के विशेष पौधे का रस उसके मुख में निचोड़ कर डाला गया कुछ घंटों की मेहनत रंग लाई l किशोर बालक ने आंखें खोलीं l
सरदार ने उससे पूछा -   "तुम किसके पुत्र हो"?
  परंतु उसको जवाब ना मिला | बहुत पूछने पर भी वह अपना नाम न बता सका | उसकी स्मरण शक्ति लुप्त हो गई थी l शायद उसके मस्तिष्क पर गहरा आघात लगा था l अब मेला जाने का कोई प्रश्न ही नहीं था। मेला का समय समाप्त हो रहा था। इसलिए सब लोग राघोपुर बस्ती लौट आए l उस किशोर की देखभाल सरदार करने लगा फिर तो वह सरदार का पुत्र ही बन गया। धीरे-धीरे वह किशोर बालक अपने यौवन के प्रथम चरण में पहुंचा,परन्तु उसकी स्मरण शक्ति किसी भी उपाय से वापस नहीं आई। वह युवक सरदार को ही अपना पिता,तथा अपने को राघोपुर का ही निवासी समझने लगा | उसने अपने हाथ में खुदे सांप के चिन्ह पर कभी ध्यान नहीं दिया,तथा वह कौन है,यह समझने का प्रयास भी नहीं किया | फिर तो सरदार को उससे पुत्रवत स्नेह हो गया l वह सदा अपने पास ही रखना चाहता था उस किशोर को l
   उसको विश्वस्त सूत्र से यह ज्ञात हो चुका था कि यह किशोर जमुना बाड़ी के सरदार का ही पुत्र है l परन्तु व्यक्तिगत स्वार्थ वश और चली आ रही पुरानी दुश्मनी के कारण कभी भी जमुना बाड़ी के सरदार को उसके पुत्र को लौटाने का प्रयास नहीं किया। यह बात जमुना बाड़ी के सरदार को कभी ज्ञात न हो सका l होता भी कैसे,सपेरों के कबीलों के सदस्यों की यह खूबी थी कि कोई भी अपने गांव का रहस्य दूसरे गांव वालों को नहीं बताता था l फिर इन दोनों बस्ती के बीच में तो पुरानी दुश्मनी थी l लेकिन राघोपुर का सरदार नए विचार का था l वह इस  दुश्मनी को समाप्त करना चाहता था l कई बार इस संदर्भ में जमुना बाड़ी के सरदार से मिलने का प्रयास भी किया परन्तु सफलता नहीं मिली।
  सरदार को अपना एक भी बेटा नहीं था, मात्र एक पुत्री थी | उसने कभी इस किशोर को अपना भाई नहीं माना l वह हमेशा एक सहोदर भ्राता के लिए तरसती रही l कर्मा के पर्व में वह हर वर्ष उदास हो जाती थी, सरदार से उसका यह दु:ख देखा नहीं जाता था | वह सोचता था जो दु:ख शब्बो को एक भाई के लिए होता है क्या वही दु:ख जमुना बाड़ी के सरदार की पुत्री को नहीं होता होगा ? इसलिए उसके भाई को तो लौटा देना चाहिए | जब शब्बो उसको अपना भाई मानने को तैयार ही नहीं  होती है,तो उस युवक को असली बाप से मिला देना ही बेहतर है। इसलिए सोच समझकर उसने उसे वापस कर देने का फैसला ले लिया | 
जमुना बाड़ी का सरदार चुपचाप उसकी बातों को सुनता रहा,फिर उसके सामने आठ वर्ष पूर्व की घटना साकार होने लगी। 
ठीक ही तो सरदार कह रहा है,ऐसा ही हुआ था,इसीलिए तो दूर-दूर तक खोजने पर भी उसका पुत्र न मिला था | आठ वर्ष पूर्व ! हां सवेरे का समय रहा होगा l धन्नो और उसका भाई दोनों जंगल में बीन बजाते हुए चल पड़े थे,बाल सुलभ चंचलता थी। सांप पकड़ने की जिद थी l दोनों बहुत दूर जंगल में निकल गये l एक ऊंची चट्टान पर जाकर खड़े हो गये l यहां से पानी नीचे झरने के रूप में गिर रहा था l किशोर बालक पानी को उत्सुकता पूर्वक गिरता हुआ देख रहा था l धन्नो ने उससे बीन मांगा,परन्तु उसने नहीं दिया | गुस्सा में धन्नो ने उस को धक्का दे दिया | वह धड़ाम की आवाज के साथ नीचे जा गिरा। धन्नो डर गई,वह वहीं पर बैठ कर रोने लगी | भाई के झरने में गिरने का दु:ख और माता-पिता के भय से वह घर भी नहीं जा रही थी | इस तरह दोपहर हो चला |
  मेला जाने के लिए लोग तैयार हो रहे थे जमुनाबाड़ी के सरदार को अपने पुत्र-पुत्री की लापरवाही पर क्रोध आया | उसने उन्हें खोजने के लिए जंगल में आदमी भेजा | उसने वापस आकर सारी बात बताई,तथा धन्नो को भी वह साथ ही लेता आया था | दुर्घटना हुए कई घंटे बीत चुके थे | नीचे पानी तीव्र गति से एक दिशा में बह रही थी । उसने नदी के किनारे किनारे आदमियों को लगा दिया खोजने के लिए,परन्तु कहीं भी अपने पुत्र के शव को भी नहीं पाया l उसके जिंदा बचने की तो किसी को उम्मीद ही नहीं थी l उसको क्या पता था कि उस का पुत्र किसी और आदमी के हाथ लग चुका है l सीने पर पत्थर रखकर इस घटना को सरदार भूल गया l उसको कभी जरा सी भी भनक नहीं लग पायी कि उसका पुत्र दुश्मन के गांव में पल रहा है l
   "क्या सोच रहे हो सरदार ? कैसा लगा तुम्हें मेरा यह उपहार?"
    जमुना बाड़ी के सरदार को ध्यानमग्न देख राघोपुर के सरदार ने पूछा l जमुना बाड़ी के सरदार का ध्यान इस आवाज को सुनकर भंग हो गया l उसने मुस्कुराते हुए राघोपुर के सरदार से कहा  -  
    "मैं तुम्हारी बुद्धिमत्ता और सहृदयता का कायल हूं दोस्त l मैं तुम्हारा यह उपकार कभी नहीं भूल सकता,कभी नहीं। सचमुच तुमने आज मुझे अनमोल उपहार दिया है।"
  सरदार की आंखों में खुशी के आंसू तैरने लगे थे l उसने उस युवक को अपने समीप बुलाया तथा उसके मुख पर अपना प्रतिबिंब देखकर, और हाथ में सांप का विशेष चिन्ह देखकर वह आश्वस्त हो गया l राघोपुर के सरदार ने कहा   -
   "बेटा यह तुम्हारे अपने पिता हैं l मैं तो तुम्हें पुनर्जीवन दे कर पालने वाला मात्र एक साधारण इंसान हूं"|
  युवक आश्चर्यचकित सा जमुना बाड़ी के सरदार को निहारता रहा,फिर बोला -
   "लेकिन मुझे तो कुछ भी याद नहीं"|
   "तुम्हें समय आने पर सब याद आ जाएगा | धन्नो तुम्हारी अपनी सगी बहन है, समझे | शब्बो तुम्हारी बहन नहीं है"|
   "लेकिन सरदार मैंने आपको अपना पिता माना है,अब यह नया रिश्ता क्यों कर मान सकता हूं मैं l हाँ धन्नो को मैंने बहन मान लिया है l मुझे उससे मिलकर खुशी हुई"|
  अब तुम स्वतंत्र हो पुत्र, तुम दोनों बस्ती में आ जा सकते हो l दोनों सरदार का घर तुम्हारा अपना ही होगा"|
  युवक खुश हो गया | मनकू मांझी से वह अभी तक बातें नहीं कर पाया था l इस अवसर पर उसने उसकी तलाश की, परन्तु कहीं नहीं मिला वह l

          क्रमशः



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